मनोविज्ञान की प्रकृति और क्षेत्र

मनोविज्ञान के अलग-अलग क्षेत्र: जानिए क्या हैं उनके नाम


मनोविज्ञान में प्राणियों का अध्ययन किया जाता है। प्राणी कैसे इन्द्रियों द्वारा मिली जानकारी को संगठित करके सीखता है, सोचता है, याद करता है, समझता है तथा साथ ही साथ अपने पर्यावरण (environment) की वस्तुओं एवं घटनाओं के साथ किस तरह से अन्तः क्रियाएँ (interactions) करता है, आदि का अध्ययन मनोविज्ञान में किया जाता है। इसके अलावा मनोवैज्ञानिक कुछ इन प्रश्नों का भी उत्तर ढूँढ़ने का प्रयास करता हैं की व्यक्ति क्यों किसी चीज को आसानी से याद कर लेता है तथा दूसरी चीज को काफी प्रयासों में भी नहीं याद कर पाता है? व्यक्ति में चिन्तन (thinking) का विकास कैसे होता है? भिन्न-भिन्न व्यक्तियों का प्रत्यक्षण भिन्न क्यों होता है? व्यक्तित्व का विकास कैसे होता है। इन सभी प्रश्नों के उत्तर मनोविज्ञान से पता कर सकते हैं। इस उत्सुकता एवं जिज्ञासा के कारण ही हम ये सोचने के लिये भी बाध्य हो जाते है कि किस प्रकार लोग एक दूसरे से बुद्धि, अभिक्षमता तथा स्वभाव में भिन्न है। वे कभी प्रसन्न तो कभी दुःखी क्यों होते हैं। किस प्रकार वे एक दूसरे के मित्र या शत्रु हो जाते हैं? कुछ लोग किसी कार्य को जल्दी सीख लेते हैं, जबकि दूसरे उसी कार्य को सीखने में अपेक्षाकृत अधिक समय क्यों लगाते हैं? इन प्रश्नों का उत्तर एक अनुभवहीन व्यक्ति भी दे सकता है, तथा वह व्यक्ति भी जिसे मनोविज्ञान का ज्ञान है। एक अनुभवहीन व्यक्ति सामान्य ज्ञान के आधार पर इन प्रश्नों का उत्तर देता है, जबकि एक मनोवैज्ञानिक इन क्रियाओं के पीछे छिपे कारणों का क्रमबद्ध रूप से अध्ययन करने के बाद इन प्रश्नों के वैज्ञानिक उत्तर देता है।

मनोविज्ञान के स्वरूप एवं क्षेत्र 

मनोविज्ञान की परिभाषा और लक्ष्य

मनोविज्ञान (Psychology) दो ग्रीक शब्दों, 'Psyche' तथा 'Logos' के मिलने से बना है। 'Psyche' का अर्थ 'आत्मा' तथा 'Logos' का अर्थ अध्ययन करना अथवा 'विवेचना करना होता है। अतः इस शाब्दिक अर्थ के अनुसार मनोविज्ञान को आत्मा का अध्ययन करने वाला (study of soul) विषय माना गया है। आरंभिक ग्रीक दार्शनिकों जैसे अरस्तू (Aristotle) तथा प्लेटो (Plato) ने मनोविज्ञान को आत्मा का ही विज्ञान कहा। 17वीं शताब्दी के दार्शनिकों जैसे लिबिनिज (Leibinitz), लॉक (Locke) आदि ने 'Psyche' शब्द का अधिक उपयुक्त अर्थ मनः (mind) से लगाया। और इस तरह से इन लोगों ने मनोविज्ञान को मन के अध्ययन (study of mind) का विषय माना। परन्तु आत्मा या मन ये दोनों ही कुछ पद ऐसे थे जिनका स्वरूप अप्रेक्षणीय (unobservable) तथा अदर्शनीय था। अतः इन दोनों तरह की परिभाषाओं को वैज्ञानिक अध्ययन के लिए स्वीकार्य नहीं माना गया। इसके बाद लोगों ने मनोविज्ञान को चेतना (consciousness) या चेतन अनुभूति (conscious experience) के अध्ययन को विज्ञान कहा। विलियम वुण्ट (Wilhelm Wundt) तथा उनके शिष्य टिचेगर (Titchener) इस परिभाषा के प्रमुख समर्थक थे। परन्तु इस परिभाषा को भी वैज्ञानिक अध्ययन के लिए स्वीकार्य नहीं माना गया क्योंकि इससे वैज्ञानिक ढंग से प्रेक्षणीय करने एवं समझाने में कोई खास मदद नहीं मिलती थी। विलियम वुण्ट को प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का जनक (Father of experimental psychology) कहा जाता है क्योंकि इन्होंने लिपजिंग विश्वविद्यालय में 1879 में पहली मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला खोली थी।

आधुनिक मनोवैज्ञानिकों द्वारा मनोविज्ञान को अधिक वैज्ञानिक एवं वस्तुनिष्ठ रूप से परिभाषित करने की कोशिश की गयी। इन लोगों ने मनोविज्ञान को व्यवहार का अध्ययन (study of behaviour) का विज्ञान माना है। मनोविज्ञान को व्यवहार के अध्ययन के विज्ञान के रूप में परिभाषा जे.बी. वाटसन (J.B. Watson) ने सर्वप्रथम दिया था। व्यवहार को एक ठोस एवं प्रेक्षणीय (observable) पहलू के रूप में परिभाषित किया गया। अतः यह आत्मा, मन तथा चेतना आदि से काफी भिन्न था क्योंकि ये सभी कुछ ऐसे थे जो आत्मनिष्ठ (subjective) थे तथा जिनका प्रेक्षण (observation) भी नहीं किया जा सकता था। इसको विषय-वस्तु व्यवहारात्मक प्रक्रियाएँ (behaviour processes) माना गया जिसे आसानी से प्रक्षेण किया जा सकता है। सीखना, प्रत्यक्षण, हाव-भाव आदि जिनका वस्तुनिष्ठ अध्ययन संभव है। उसका ही अध्ययन मनोविज्ञान करता है। साथ ही साथ मनोविज्ञान उन मानसिक प्रक्रियाओं (mental processes) का भी अध्ययन करता है जिनका सीधे प्रेक्षण तो नहीं किया जाता है परन्तु उसके बारे में आसानी से व्यवहारात्मक एवं मनोवैज्ञानिक आँकड़ों के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है। इन तथ्यों को ध्यान में रखकर मनोविज्ञान की एक उत्तम परिभाषा 

सैनट्रोक (Santrock, 2000) द्वारा दी गई 

"मनोविज्ञान व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है।"


बेरोन (Baron, 2001) के अनुसार, 'गनोविज्ञान संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं एवं व्यवहार के विज्ञान के रूप में उत्तम ढंग से परिभाषित किया जाता है।"


सिस्सरेल्ली एवं मेअर (Ciccarelli & Meyer, 2006) के अनुसार, "मनोविज्ञान व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। 


मनोविज्ञान के लक्ष्य (Goals of Psychology)


मनोविज्ञान मानव एवं पशु के व्यवहार एवं संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। ऐसे अध्ययन के पीछे उसके कुछ छिपे लक्ष्य (goals) होते हैं। मनोविज्ञान के मुख्य लक्ष्य निम्नांकित तीन है। 

  • मापन एवं वर्णन (Measurement and description)

  •  पूर्वानुमान एवं नियंत्रण (Prediction and control)

  • व्याख्या (Explanation)


(i) गापन एवं वर्णन

मनोविज्ञान का सबसे प्रथम लक्ष्य प्रणाली के व्यवहार एवं संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन करना तथा फिर उसे मापन करना होता है। प्रमुख मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं जैसे- चिंता, सीखना, मनोवृत्ति, क्षमता, बुद्धि आदि का वर्णन करने के लिए पहले उसे मापना आवश्यक होता है। इसे मापने के लिए कई तरह के परीक्षण की आवश्यकता होती है। इसलिए मनोविज्ञान का एक मुख्य लक्ष्य मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को मापने के लिए परीक्षण या विशेष प्रविधि का विकारा करना है। किसी भी मनोवैज्ञानिक परीक्षण या प्रविधि में कम-से-कम दो गुणों का होना अनिवार्य है विश्वसनीयता (reliability) तथा वैधता (validity) । विश्वसनीयता से तात्पर्य इस तथ्य से होता है कि बार-बार मापने से व्यक्ति के प्राप्तांक में कोई परिवर्तन नहीं आता है। वैधता से तात्पर्य इस बात से होता है कि परीक्षण वही माप रहा है जिसे नापने के लिए उसे बनाया गया है। मापने के बाद मनोवैज्ञानिक उस व्यवहार का वर्णन करते हैं। जैसे बुद्धि परीक्षण द्वारा बुद्धि मापने पर यदि किसी व्यक्ति का बुद्धि लब्धि (intelligence quotient) 150 आता है तो मनोवैज्ञानिक यह समझते हैं कि व्यक्ति तीव्र बुद्धि का है और यह विभिन्न परिस्थितियों में बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहार कर सकता है।


(ii) पूर्वानुमान एवं नियंत्रण 

मनोविज्ञान का दूसरा लक्ष्य व्यवहार के बारे में पूर्वकथन करने से होता है ताकि उसे ठीक ढंग से नियंत्रित किया जा सके। जहाँ तक पूर्वकथन का सवाल है. इसमें सफलता, मापन (measurement) की सफलता पर निर्भर करता है। सामान्यताः मनोवैज्ञानिक व्यवहार के मापन के आधार पर ही यह पूर्वकथन करते हैं कि व्यक्ति अमुक परिस्थिति में क्या कर सकता है तथा कैसे कर सकता है? जैसे अगर हम किसी छात्र के सामान्य बौद्धिक स्तर का मापन करके उसके बारे में सही-सही जान लें तो हम स्कूल में उसके निष्पादन (performance) के बारे में पूर्वकथन आसानी से कर सकते हैं। जैसे व्यक्ति की अभिरुचि को मापकर मनोवैज्ञानिक यह पूर्वानुमान लगाते हैं कि व्यक्ति को किस तरह के कार्य (job) में लगाना उत्तम होगा ताकि उसे अधिक-से-अधिक सफलता प्राप्त हो सके। पूर्वकथन तथा नियंत्रण साथ-साथ बदलता है और मनोवैज्ञानिक जब भी किसी व्यवहार के बारे में पूर्वकथन करता है तो उसका उद्देश्य उस व्यबहार को नियंत्रित भी करना होता है।


(iii) व्याख्या

मनोविज्ञान का अंतिम लक्ष्य मानव व्यवहार की व्याख्या करना होता है। व्यवहार की व्याख्या करने के लिए मनोवैज्ञानिक कुछ सिद्धान्तों का निर्माण करते हैं ताकि उनकी व्याख्या वैज्ञानिक ढंग से की जा सके। ऐसे सिद्धान्त ज्ञात स्त्रोतों से तथ्यों को संगठित करते हैं और मनोवैज्ञानिक को उस परिस्थिति में तर्कसंगत अनुमान लगाने में मदद करते हैं जहाँ वे सही उत्तर नहीं जान पाते हैं। मानव व्यवहार की व्याख्या करना मनोविज्ञान का सबसे अव्वल लक्ष्य हैं क्योंकि जब तक मनोवैज्ञानिक यह नहीं बतला पाते हैं कि व्यक्ति अमुक व्यवहार क्यों कर रहा है, अमुक मापन प्रविधि क्यों काम में ले रहा है तो वे सही ढंग से न तो उस व्यवहार के बारे में पूर्वकथन कर सकते हैं और न ही ठीक ढंग से नियंत्रण संभव है।

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