श्रीनगर गढ़वाल में अलकनंदा नदी के किनारे कूडे का डंपिंग जोन एक निराशाजनक दृश्य

बदलता श्रीनगर बदलती देवभूमि

Image source :Mohit Bagri 

दोस्तों वैसे तो यह  एजुकेशन ब्लॉग है लेकिन देवभूमि की यह हालत और यहा की सोयी जनता, नेता और प्रशासन ने क्या हाल कर दिया ये तो आप लोग फोटो में देख ही रहे होंगे। यह फोटो श्रीनगर गढ़वाल की नदी किनारे के कूडे के डंपिंग जोन की है। श्रीनगर नगर परिषद क्षेत्र में शहर के बीचोबीच घनी आबादी के बीच और अलकनंदा नदी किनारे कचरा डंप किया जा रहा है। जिससे यहा हवा भी बदबूदार हो गयी है। आते जाते लोग और यहा रहने वाले लोग इस बदबू से परेशान है। इससे बीमारियाँ फैलने का डर बना हुआ है। 

अलकनंदा नदी के इतने करीब कूड़े का ढेर देखना निराशाजनक दृश्य है। यह पर्यावरण चेतना और जिम्मेदार अपशिष्ट प्रबंधन की तत्काल आवश्यकता की याद दिलाता है। अलकनंदा नदी की प्राचीन सुंदरता और कूड़े के ढेर की गंदगी के बीच का अंतर पर्यावरण पर मानव प्रभाव को उजागर करता है। शायद यह छवि किसी डायस्टोपियन उपन्यास में एक शक्तिशाली चित्रण के रूप में काम कर सकती है, या शायद यह किसी लेखक को अनियंत्रित प्रदूषण के परिणामों के बारे में एक कहानी गढ़ने के लिए प्रेरित करेगी।

Image source : Mohit Bagri

देवभूमि कहा जाने वाला उत्तराखंड विकास की भेट चड़ चुका है। एक ऐसी देवभूमि जहा के लोग पलायन कर रहे हैं और बाहरी लोग यहा आ कर बस चुके हैं। आधुनिकीकरण के बहाने प्रकृत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। अगर आपको आधुनिकीकरण करना है तो प्रकृति को ध्यान में रखकर करना चाहिए। 

नीति निर्माताओं के लिए सबसे बड़े सवाल

खुले में कुड़ा डंप करने के बजाय उन्हें बंद करके डंप किया जाना चाहिए। आपको अछे नीति निर्माताओं की जरूरत होती है। उत्तराखण्ड के नीति निर्माता तो वो नेता लोग होते है जिन्हें ये भी पता नहीं होता है नदी के 10 मीटर नजदीक डंपिंग जोन बनाने से क्या होगा। 

ये कहानी श्रीनगर गढ़वाल की ही नहीं अपितु पूरे भारत की है। श्रीनगर में अलकनंदा नदी गंगा बनने से पहले ही प्रदुषित हो जाती है। गाए डंपिंग क्षेत्र में कूडे को अपना भोजन बना रहीं हैं। ये हालत है गोमाता की। कहते हैं कि एनजीटी के नियमों का उलंघन करते हुए नदी किनारे कूड़ा डंप किया जा रहा है। जो कि पर्यावरण के लिए भी ठीक नहीं है। खुले में कूड़ा डंप करना ये एक अपराध से कम नहीं है। इस मामले में स्थानीय प्रशासन को जागरूक होना पड़ेगा तभी जाकर कुछ हो पाएगा। खुले डंपिंग यार्ड ना बनाये जाये। 

कैसे कूडे के ढेर से फैलती हैं बीमारियाँ? 

  • सबसे पहले तो यह वायु प्रदूषण करेगा जिससे फेफड़ों का कैंसर का खतरा बढ़ सकता है और प्रदूषण का ज्यादा असर पड़ा तो जन्म लेने वाले बच्चे अपंग हो सकते हैं। 

  • मिट्टी और पानी दूषित हो जाता है। मिट्टी के संपर्क में आने पर, कचरा आमतौर पर खराब होने लगता है। इस प्रक्रिया के दौरान, कई खतरनाक रसायन और विषाक्त पदार्थ जो पहले एक साथ या अन्य अणुओं से बंधे हुए थे, मिट्टी में रिसने लगते हैं, हवा में उत्सर्जित होते हैं या पानी में बह जाते हैं। और यहा तो नदी 10 मीटर से भी कम दूरी पर है। और ये पानी ही आगे चलकर पीने योग्य बनाया जाता है। 

  • यह कचरा अपने साथ वन्यजीवों को भी नुकसान पहुंचाता है। लावारिस गाए इस कूडे को खाकर बीमार पड़ जाती है। 

  • जानलेवा बीमारियों में डेंगू बुखार, पीत ज्वर, इंसेफेलाइटिस और मलेरिया होने का खतरा आगे आने वाले समय में यहां बड़ जाएगा। 

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