लीजेंडरी टाइगर हंटर जिम कॉर्बेट की वन्यजीव संरक्षणवादी बनने की दिलचस्प कहानी

जिम कॉर्बेट ने आदमखोर बाघों से कैसे मुकाबला किया


लीजेंडरी टाइगर हंटर जिम कॉर्बेट जिस राइफल का इस्तेमाल करते थे उसका नाम था मार्टिनी हेनरी इस राइफल से उन्होंने कहीं बाग मारे ।
जिम कॉर्बेट का जन्म उत्तराखण्ड के नैनीताल में हुआ था। लेकिन वे मशहूर हुए डेविल ऑफ चंपावत नामक एक घटना से। ये कहानी है एक बाग की जिसने 436 लोगों को शिकार बनाया था। एक जानवर से मारे गए लोगों का यह रिकार्ड गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है। भारत के उत्तरी भारत का पहाड़ी राज्य Uttrakhand का एक जनपद चंपावत नेपाल देश की सीमा से सटा हुआ है। दोनों देशों के बीच यहा महाकाली नाम की नदी बहती है। जिसे काली गंगा भी कहा जाता है।

डेविल ऑफ चंपावत

साल 1907 की कहानी है चंपावत में एक कहावत चलती थी तब की "काली पार को कलवा ढोली सोर को बाघ" यानी कि काली गंगा के इस पार कलूवा है और उस पार बाघ। कलूवा एक खतरनाक गुंडे का नाम था जो नेपाल में रहता था। कहावत कहती हैं कि जितनी हत्याएँ कलूवा ने की उतनी ही बाघिन ने भी की थी। जो आदमखोर बाघिनी थी खौफ ऐसा की लोगों ने घर से निकलना छोर दिया था।
पहाड़ी भाषा में घास काटने जाने वाली महिलाओं को घयसारी बोलते हैं, अपने घर से कयी किलोमिटर दूर जाने वाली महिलाये जब घास काटने जगल जाते थे तो गीत गाते हुए जाते थे "तेरी भेस भूखी रमणी ओ लीला घयसारी" यानी घास काटने वाली लीला तेरी भेस भूख से रंमभा रहीं हैं। ऐसी घयसारी को बाघ ने शिकार बनाना शुरू किया। महिलाये गायब होने लगी ऐसे, लोग जगल में जाते थे तो उन्हें खून के धब्बे दिखे मिलते थे। जब यह बात नेपाल के राजा तक पहुची तो उन्होंने शिखारी छोड़े जो आदमखोर बाघिनी का शिकार कर सके। लेकिन काम बना नहीं। 

देखते देखते बाघिन ने 200 लोगों की हत्या कर दी। इसके बाद राजा को फ़ौज उतारनी पड़ी लेकिन राजा की फ़ौज भी बाघ का कुछ बिगाड़ नहीं पायी। लेकिन इतना जरूर हुआ कि बाघ को वहा से खदेड दिया गया। इसके बाद बाघ ने अपना बसेरा चंपावत के जंगलों में बना दिया। कुमाऊं में तब अंग्रेजों का शाशन था। अंग्रेजों तक यह बात पहुची की चंपावत के गांवों से बच्चे और महिलाएँ गायब हो रहे थे। अंग्रेजों ने भी कोशिश की लेकिन वे बाघ को पकड़ नहीं पाए। चंपावत में ही अल्मोडा में अंग्रेजों की छावनी थी। यहा से गोरखा जवानो को भेजा गया लेकिन वो भी असफल रहे। इसके बाद सरकार ने बाघ के पीछे इनाम रखा। इसके चलते कही लोग बाघ के पीछे गए लेकिन वो भी या तो खाली हाथ लौटे या खुद बाघ का शिकार बन गए। इस बाघिनी का आतंक बड़ता जा रहा था। मरने वालों का आकड़ा 436 पहुच गयी थी। इससे चंपावत का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में तो जुड़ा लेकिन लोगों का जीवन दूभर हो गया था। जब अंत में कोई रास्ता नजर नहीं आया तो फिर प्रशासन की तरफ से एक संदेश नैनीताल भेजा गया और इस तरह एंट्री हुई जिम कॉर्बेट की उन्होंने अपनी किताब "Men Eaters Of Kumaon" में लिखते हैं कि जब मैं पाली गांव पहुँचा दिन में लोगों के घरों के दरवाजे बंद थे। बाघ के डर से लोग अपने घरों में कैद हो गए थे। इस डर की वजह यह भी थी कि बाघ ने इस गांव में अपना आखिरी शिकार भी किया था लेकिन बाद में पता चला कि उसने एक बड़े इलाके को अपना एरिया बना के रखा था। और शिकार के लिए कभी कभी वह एक दिन में 30 क्रम की दूरी तय कर लेती थी।

जिम कॉर्बेट ने आते ही दो शर्ते रखी। 

  • पहली बाघ के ऊपर से इनाम हटाओ। 
  • दूसरी मेरे अलावा कोई भी बाघ को नहीं मारेगा।
इसके पीछे भी एक वज़ह थी। कॉर्बेट नहीं चाहते थे कि इनाम के चक्कर में नौसिखिए उनका काम बिगाड़ दे। इस प्रकार इस काम को पूरा करने की जिम्मेदारी उन्होंने अपने सर पर ली।
कॉर्बेट को पता चला कि बाघ ने अपना आख़िरी  शिकार पाच  दिन पहले ही किया था। भूख कब लगेगी यह अंदाजा लगाकर वो बाघ के अगले कदम का पता लगाने निकले। शिकार की पहली रात कॉर्बेट पेड़ पर मचान बना के बैठे लेकिन बाघ नहीं दिखा। अगले कई दिन ऐसे गुज़रे, कॉर्बेट को अब लम्बा इंतजार करना पड़ा। इस बीच उन्होंने गांव वालों के लिए तीन जंगली जानवर मारे ताकि उन्हें भरोसा हो जाये कि आदमी काम का है। कॉर्बेट हर रात जगल में जाते लेकिन बाघनी उनके हाथ आयी नहीं।
कॉर्बेट ने अपनी किताब में लिखा है कि वो खेत में काम करने वाली लड़कियों और महिलाओं को अपना शिकार बनाती है।
कॉर्बेट को अहसास हुआ कि आदमी होने की वजह से बाघ उनके नजदीक नहीं आ रहा है। इसलिए उन्होंने सारी लपेटी, झासा देने के लिए भूसे का पुतला भी रखा। लेकिन बाघिन एक दो बार उनके करीब आयी भी लेकिन इतने करीब नहीं की वो बाघिन को मार सकते।
फिर बाघिन कई दिनों तक नहीं दिखी, कॉर्बेट को पता चल गया कि बाघिन ने अपना ठिकाना बदल दिया है।
कुछ रोज बाद कॉर्बेट को पता चला कि 15km दूर चंपावत डाक बगले के पास उसे देखा गया है। कॉर्बेट ने डाक बगले का रुख किया। इस वही उनके रुकने का इन्तेजाम हुआ। कॉर्बेट ने सोचा कि रात आराम कर के फिर से काम पर लग जाऊँगा। इससे पहले ही उनके साथ डाक बगले में ऐसी घटना घट गयी कि बाघ सेकंडरी मैटर हो गया, हुआ यू की जब कॉर्बेट डाक बगला पहुंचे तो वहा उन्हें तहसीलदार मिला जो स्वागत के लिए आया था। रात हो गयी थी लेकिन कॉर्बेट को लगा कि बाघ का डर है तो शायद तहसीलदार बगले में ही रुक जायेगे। कुछ देर बाद उनकी हैरत का ठिकाना नहीं रहा जब तहसीलदार लालटेन लेकर जगल के रास्ते घर चलते बने। अपनी किताब में उन्होंने लिखा था कि तहसीलदार का घर 5km दूर था और पूरा रास्ता जगल का था। इलाके में आदमखोर बाघ का डर भी था। उन्हें समझ नहीं आया था कि तहसीलदार ने इतना खतरा क्यों उठाया। ये बात उन्हें रात को समझ आयी जब कॉर्बेट खाना खा कर अपने कमरे में सो रहे थे। उनका नौकर बहादुर खान अलग कमरे में था। बहादुर खान ने उस रात के बारे में बताया कि कॉर्बेट के कमरे से अजीब आवाजें आ रही थी। आधी रात को उनका कमरा खुला और कॉर्बेट भागते भागते बाहर आए। उन्होंने कपड़े भी नहीं पहने थे, पसीने से एकदम तर थे। सासें उनकी ऊखडी हुई थी, उन्होंने बहादुर से कहा आज रात में तुम्हारे कमरे में सोऊगा।
अपनी किताब में उन्होंने लिखा है कि मेरे पास इस बगले की एक कहानी है। जो मे नहीं बताऊँगा। वैसे भी यह किताब जगल की कहानियो के बारे में है और प्रकृति की अलावा दूसरी घटआए यहा जोड़ना ठीक नहीं है। इससे यह पता चलता है कि उन्होंने डाक बगले में भूत वगैरा कुछ देखा था। उन्होंने यह भी लिखा था कि मे अंधविश्वासी नहीं हू लेकिन डाक बगले में मेरे साथ जो हुआ उसके बारे में मेरे पास कुछ सफाई नहीं है।
सुबह होने पर उन्हें पता चला कि बाघिन ने एक और लड़के को अपना शिकार बना लिया। अपनी राइफल लेकर कॉर्बेट ने फिर उधर का रुख किया। जेसे ही वह वहां पहुंचे तो वहां खून के धब्बे के निशान दिख रहे थे। कॉर्बेट ने बाघ के कदमों के निशान का पीछा किया, कुछ दूर एक टंकी के पास बाघिन उस लाश को ऊधेडने में लगी हुई थी। उसकी नजर कॉर्बेट पर पड़ी तो उसने लाश को खींचने की कोशिश की लेकिन वह लाश को तो वहा से नहीं ले जा पायी लेकिन वो खुद वहा से भाग गयी। इस कॉर्बेट ने उसका पीछा किया लेकिन चार घण्टे बाद भी वह उसे पकड़ नहीं पाए अगले दिन कॉर्बेट ने अपना प्लान बनाया बाघिन अपना शिकार छोर के गयी थी इसलिए सम्भावना थी कि वह वापस लौटेगी। इसलिए कॉर्बेट ने अगले दिन के लिए जाल बिछाया उन्होंने गांव के लोगों को इकट्ठा किया सब लोग कुल्हाड़ी चाकू लेकर इकठ्ठा हुए थे साथ में ढोल नगाड़े भी थे।
कॉर्बेट का प्लान था कि लोग ढोल नगाड़े बजाएगे जिससे बाघिन एक दिशा में भागेगी और उस दिशा में कॉर्बेट खुद खड़े रहेगे और निशाना लगा के ताक में होंगे। कॉर्बेट का यह प्लान सफल भी रहा। अगले सुबह जेसे ही बाघिन आयी तो लोगों के शोर से उसने रास्ता बदल दिया। जेसे ही वह कॉर्बेट की नजर में आयी उन्होंने राइफल से गोली चला दी। 3-4 गोली लगने के बाद "डेविल ऑफ चंपावत" बाघिन ने दम तोड़ दिया था। बाघिन के मरने के बाद लोगों ने जश्न मानना शुरू किया।

वह वन्यजीव संरक्षणवादी कैसे बने?

कॉर्बेट यह देख कर खुश थे लेकिन तभी उनकी नजर उस चीज पर गयी जिसने उनके चेहरे की मुस्कान को फीका कर दिया।
कॉर्बेट ने देखा कि मरी हुई बाघिन के दाये और के दांत टूटे हुए थे जबड़ा गायल था। इसका मतलब वो पहले भी एक गोली का शिकार हुई थी। जिसके चलते उसको शिकार करना मुश्क़िल हो गया था।
तब कॉर्बेट को एहसास हुआ था कि इसलिए बाघिन आदमखोर बनी हुई थी क्योंकि उसे चोट पहुची थी। जिसे वह डेविल समझ रहे थे उसे डेविल बनाने के पीछे इंसान की ही गोली थी। इस घटना ने कॉर्बेट पर ऐसा असर ड़ाला की वह बाघ बचाने की मुहिम में जुड़ गए। इसी के चलते उत्तराखण्ड के नैशनल पार्क का नाम जीम कॉर्बेट नैशनल पार्क रखा गया। 


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