उत्तराखंड के अद्वितीय अल्पाइन घास के मैदान बेदिनी बुग्याल का अवलोकन

Bedni Bugyal

हिमालय में सबसे ऊचाई पर स्थित अल्पाइन घास का मैदान और खूबसूरत चोटिया जो भारत में उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है जिसे बेदिनी बुग्याल के नाम से जाना जाता है। यह जगह इतनी खूबसूरत हैं की मन मोह लेगी। बेदिनी बुग्याल का सफर  वाँण गांव से शुरू होता है। निचला क्षेत्र अली बेदनी बुग्याल के नाम से जाना जाता है।  बेदनी बुग्याल, भारत के सबसे खूबसूरत घास के मैदानों में से एक, जो अभी तक खोजा नहीं गया है। यह उत्तराखंड के एक अलग क्षेत्र में छिपा हुआ है।


यह विशाल घास का मैदान, जिसे स्थानीय भाषा में बुग्याल कहा जाता है, न केवल देखने में सुंदर है, बल्कि एशिया का सबसे बड़ा अल्पाइन घास का मैदान भी है। बेदिनी बुग्याल तक पहुंचने के लिए लोहाजंग से शुरू होकर 12,500 फीट (बेदनी टॉप) तक जाने वाली 2-3 दिनों की यात्रा से गुजरना होगा।रूपकुंड का रास्ता भी यही से गुजरता है। अप्रैल मई के बाद पर्वत और घाटियां अलग अलग फूलों और वनस्पतियों से लदा लद रहती हैं। ब्रह्म कमल की 24 प्रजातियां में से कही प्रजातियां आपको यहा मिलेगे। ये जुलाई से सितंबर तक ही खिले रहते हैं। हिंदू धर्म में यह फूल बहुत ही पवित्र माना जाता है। ये हरे भरे बुग्याल विश्व भर में प्रसिद्ध है। ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए यह बेहतरीन जगह है। बेदिनी बुग्याल दूसरे बुग्यालों से बहोत ही अलग है यहा ट्रेकिंग पर जाने के लिए आपको एक गाइड की जरूरत पड़ेगी। यहा जाने से पहले आप पूरी तैयारी करके जाये क्युकी ये बहोत ही वीरान जगहों में से एक है। 


बेदनी बुग्याल से गुजरते हुए आपको त्रिशूल और नंदा देवी पर्वत भी दिखेंगे

पूरे देश का सबसे बेहतरीन पहाड़ी दृश्य आपको बेदनी बुग्याल के घास के मैदानों से मिलता है। यहा माउंट त्रिशूल और माउंट नंदा एक दूसरे के सामने खड़े हैं।  पहाड़ों का पूरा आकार घास के मैदानों से निकलता है और यह उस कोण पर होता है, जहां इसके पीछे से सूरज उगता है और सूरज इसी पर डूबता है।  यह एक ऐसा प्राकृतिक भौगोलिक संरेखण है जिसे देखकर यह लगता है कि यह स्वर्ग में ही बना है।

जलवायु के कारण बुग्यालों में पौधे एक निश्चित ऊँचाई तक ही बढ़ते हैं। यही कारण है कि इन पर चलना बिल्कुल गद्दे पर चलना जैसे लगता है।


बेदिनी कुण्ड


यह एक प्राकृतिक झील है जो बरसात के समय भर जाती है। इसी कुण्ड तक आकर नंदा देवी  की डोली  बेदिनी कुण्ड तक ले जाकर सम्पन्न होती है जिसे लोकजात के नाम से जाना जाता है। इसका आयोजन प्रत्येक 12 वर्ष के बाद होता है। 


रूपकुण्ड 


यह एक हिम झील है जिसमें की पिघले हुए बर्फ का पानी इकठ्ठा होता है। यह झील 500 से ज्यादा मानव कंकालों से भरी पड़ी है। इसलिए इस झील को कंकाल झील भी कहा जाता है। रूपकुण्ड पहुचने का रास्ता बेदनी बुग्याल से ही गुज़रता है। वैज्ञानिकों द्वारा कार्बन डेटिंग से यह पता चला की ये कंकाल 12 वी सदी के थे। यह नंदा देवी की पथ यात्रा के मार्ग में पड़ता है। 


बेदनी बुग्याल  कैसे पहुंचे? 

बेदनी बुग्याल पहुचने के लिए आपको ऋषिकेश से कर्णप्रयाग,  कर्णप्रयाग से ग्वालदम, ग्वालदम से मुन्दोली होते हुए वाँण पहुंचना होगा। वाँण गांव से आपको 10 किलोमीटर की चढ़ाई के बाद बेदनी बुग्याल दिखाई देने लगेगा। अगर आपको यहा जाना हैं तो अपना टेन्ट लेकर जा सकते हैं अन्यथा शाम को विश्राम के लिए वाँण आ सकते हैं।


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