साल 2100 के अंत तक धरती में मानव जीवन विलुप्त हो जाएगा

 


जाने-माने साइंटिस्ट और अंतरिक्ष विज्ञानी स्टीफन हाकिंग ने चेतावनी दी थी कि साल 2100 के अंत तक धरती पर इंसानों के लिए कई मुश्किलें खड़ी होंगी। धरती पर जीवन मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में इंसान को जीवन की संभावनाओं को तलाशने के लिए दूसरे ग्रहों का रूख करना होगा।


वैज्ञानिकों के मुताबिक, यदि तापमान में 1.5 डिग्री सेंटीग्रेट तक इजाफा होता है तो इसके घातक नतीजे होंगे। इससे मौसम चक्र प्रभावित होगा जिससे सूखा, बाढ़, चक्र वात आदि का खतरा बढ़ेगा। यदि तापमान दो डिग्री सेंटीग्रेट तक बढ़ा तो हालात और विनाशकारी होंगे। चिंता की बात यह कि ऐसे हालात दुनिया भर में दिखाई देने लगे हैं।


ग्लोबल वार्मिंग का असर दुनिया के मौसम पर आंशिक रुप से दिखाई देने भी लगा है। कुछ देशों में बेमौसम बरसात के कारण बाढ़ जैसी स्थिति है तो कहीं सामान्य से कम बरसात के कारण सूखे जैसी स्थिति है। पिछले कुछ वर्षों में पहाड़ी क्षेत्रों में अत्याधिक बर्फबारी हो रही है तो वहींं ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ तेजी से पिघल रही है।


ग्लोबल वर्मिग की वजह से बढ़ते तापमान के कारण पूरी दुनिया में ग्लेशियरों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। ग्लेशियर नदी में पानी की आपूर्ति करने के सबसे बड़े स्रोत होते हैं। जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक दुष्प्रभाव हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों पर पड़ रहा है।


ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जहां उत्तरी भारत के अधिकांश शहरों का पारा मई-जून में ही 50 °C को छू रहा है जिसका असर मनुष्यों के साथ पशु पक्षियों और जानवरों पर पड़ रहा है वहीं खरीफ की फसलों पर भी खतरा मंडरा है। इस साल मौसम विभाग ने समान्य से कम मानूसन की संभावना जताई है। वहीं दूसरी तरफ पहाड़ों की बर्फ पिघलने से समुद्र तल तेजी से उठ रहा है जो तटीय शहरों के साथ गंभीर पर्यावरण अंसतुलन पैदा कर रहा है।

पेरिस समझौता

ग्लोबल वार्मिग को रोकने के लिए 197 देशों ने पेरिस समझौता किया था। समझौते के तहत 2100 तक पृथ्वी की सतह का तापमान 1.5 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक नहीं बढ़ने देने का संकल्प लिया गया था लेकिन, अमेरिका और चीन की अड़ंगेबाजी के कारण पूरी दुनिया को ग्लोबल वर्मिग के दुष्प्रभावों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। अमेरिका और चीन मिलकर विश्व का 40 फीसद ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं।
प्रकृति के बिना हमारा कोई अस्तित्‍व नहीं है। सब कुछ हमें प्रकृति से ही मिलता है। शायद इसीलिए प्रकृति को कुछ लोग ईश्‍वर के रूप में भी देखते हैं। प्रकृति स्वयंभू है, सनातन है, शाश्वत है, मनुष्य इस प्रकृति का अंग है। प्रकृति सम्मत विकास ही मानव संस्कृति है। हमने शायद इस शाश्‍वत सत्‍य को भुला दिया है, जिसके परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं।


पर्यावरण की दृष्टि से पृथ्वी का भविष्य क्या है?


पृथ्वी पर जीवन ही पर्यावरण की देन है । अगर पर्यावरण प्रदुषित होगा तो जीवन कैसे स्वस्थ्य होगा…?? और अस्वस्थ जीवन कितने दिनों तक जीवित (survive) रह पायेगा…???
ओजोन परत में छेद, पिघलते हिमखण्ड, समस्त देशों में बढ़ता औसत तापमान, बदलते मौसम, कभी असामान्य रूप से मूसलाधार बारिश तो कभी भयंकर बर्फबारी और कभी लम्बा सूखा । यह संकेत है पर्यावरण के गुस्सा हो जाने के ।

इन संकेतों के माध्यम से पर्यावरण कह रहा है कि:


‘हे मानव…!, सम्भल जा । और नादानी मत कर । तुम मेरी लाडली सन्तान हो इस कारण मैं तुम्हारी हर शैतानी को हसंकर टाल देता हूं । पर मत भूल कि मैं तेरा संरक्षक भी हूं । हद पार करने पर तुम्हे डांटना मेरा कर्तव्य है और जब मैं अपना कर्तव्य का पालन करता हूं तब मोह ममता परे रख देता हूं । कल की ही तो बात है जब डायनासोरों ने बहुत उधम मचाया, मेरी अवज्ञा की आज वो संग्रहालय की वस्तुमात्र बन गये है जबकि उसकी काया व ताकत तुझ से कई गुना ज्यादा थी । पुत्र…! अपनी बौद्धिकता व ज्ञान विज्ञान का भ्रम मत रख । सम्भल जा । सरल व सहज जीवन जी । दोहन कर विदोहन मत कर । नहीं तो समूल नष्ट हो जायेगा ।’

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