डायनामो का अविष्कार केसे हुआ Part 1

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जेसा की आप जानते ही है, सस्ती और भरपूर विद्युत शक्ति किसी भी देश के लिए एक बड़ा वरदान है । घरों में इससे न केवल रोशनी और गर्मी ही प्राप्त होती है वरन् इसी के द्वारा हमारे दैनिक उपयोग की अनेक चीजें भी चलती हैं । बिजली की इस्त्री , बिजली के टोस्टर , बिजली के चूल्हे , बिजली की घंटी , बिजली के कूलर , कपड़े धोने की मशीन और बिजली के उस्तरे आदि से हमारा जीवन आसान और सुखमय बन गया है । बिजली से ही ट्रेन और ट्राम , तथा फैक्ट्रियों में मशीनें चलायी जाती हैं । टेलीग्राफ , टेलीफोन , रेडियो और टेलीविजन भी बिजली से ही चलते हैं । बिजली के इतने अधिक लाभ हैं कि हम सोच कर हैरान रह जाते हैं कि जब बिजली नहीं थी तब हमारा काम कैसे चलता था । बिजली के आविष्कार को बहुत समय नहीं हुआ । सिर्फ 150 वर्ष पहले लोगों को बिजली के बिना ही काम चलाना पड़ता था । इसलिए नहीं कि  तब लोगों को बिजली की जानकारी नहीं थी , बल्कि इसलिए कि तब तक बिजली का उत्पादन कठिन होने के साथ - साथ महंगा भी था । तब इसका उत्पादन सिर्फ वैज्ञानिक लोग थोड़ी मात्रा में बस अपने प्रयोगों आदि भर के लिए किया करते थे । डायनामो या विद्युत जेनरेटर के आविष्कार के बाद ही बिजली साधारण आदमी के इस्तेमाल की चीज़ बन सकी । बिजली की जानकारी तो पहले से ही थी , बहुत पहले से । ईसा से छः सौ वर्ष पूर्व एक यूनानी दार्शनिक ने पता लगाया था कि रेशम को कपड़े के साथ रगड़ने पर एम्बर में एक विचित्र लक्षण आ जाता था - वह पास लायी गयी हर हल्की वस्तु को उठा लेता था । छोटे - छोटे कागज़ के टुकड़े , कपड़े , की कतरनें , पक्षियों के पर वगैरह उछल कर एम्बर पर पहुँच जाते और उससे चिपके रहते । इस खोज से लोगों का मनोरंजन तो होता रहा होगा लेकिन बहुत समय तक आगे इससे कोई ठोस नतीजा नहीं निकला । 1600 में एक व्यक्ति , विलियम गिलबर्ट , यों ही अपने मनबहलाव के लिए बिजली का अध्ययन कर रहा था । उसने विविध पदार्थों के साथ बड़े प्रयोग किये । उसने देखा कि एम्बर के अलावा कुछ अन्य पदार्थों में भी , जैसे कि गंधक , काँच और सील लगाने की लाख में , रेशम , फलालैन और फर के साथ रगड़ने पर , कागज़ के टुकड़ों को खींचने की शक्ति आ जाती है । इसी व्यक्ति ने पहली बार ' इलेक्ट्रि सिटी ' शब्द का प्रयोग किया । यह शब्द एम्बर के लिए यूनानी भाषा के शब्द ' इलेक्ट्रान ' से बनाया गया । संसार का स्वरूप बदल देनेवाली विद्युत के आधुनिक विज्ञान का प्रारंभ यहीं से हुआ । यूनानियों को बिजली की जानकारी होने से पहले एक ऐसे पत्थर की जानकारी थी जो लोहे के टुकड़ों को अपनी ओर खींच लिया करता है । यह पत्थर लोहे का एक आक्साइड होता है जो प्राकृतिक अवस्था में अमरीका और स्वीडन में पाया जाता है । यह खनिज पहले - पहल बड़ी मात्रा यूनान , उत्तर में प्राचीन यूनान के मैग्नीसिया क्षेत्र में पाया जाता था और इसे ' मैग्नीसिय पत्थर कहा जाता था । इसी से ' मैग्नेट ' शब्द बना । आज कृत्रिम मैग्नेटों अथवा चुम्बकों को विद्युत् धारा की सहायता से बनाया जाता है । कृत्रिम चुम्बक प्रायः दो प्रकार के बनाये जाते हैं । सबसे मामूली , सीधा छड़ के रूप में , छड़ - चुम्बक ( बार मैग्नेट ) होता है , और दूसरा अंग्रेजी के U अक्षर की तरह मुड़ा होता है जिसे नाल - चुम्बक ( हार्स - शू मैग्नेट ) कहते हैं ।

सोलहवीं शताब्दी में यूरोप में विज्ञान का जन्म हो रहा था । गिल्बर्ट के कार्य से उत्साहित होकर वैज्ञानिक लोग बिजली और चुम्बक के बारे में और अधिक जानना चाहते थे । ऐसी मशीनें बनायी गयीं जिनमें बिजली की जा सकती थी और उनमें पैदा की हुई बिजली को यंत्रों में जमा किया जा सकता था । ये यंत्र थे ' लीडेन जार और ' विमशर्ट मशीन । ' पदार्थों को रगड़कर बनायी जाने वाली बिजली को स्थैतिक अथवा घर्षण बिजली कहते हैं । इस तरह बनायी हुई । बिजली की प्रबंध - व्यवस्था कठिन थी और इसलिए इसे उत्पादन कार्य में कोई खास इस्तेमाल नहीं किया जा सका । जब बिजली की बहुत - सी मात्रा इकट्ठी की जाती थी तब वह एक अंतर पर से कूद जाती और चिनगारी पैदा करती थी । वह किसी पिंड में संचित की जा सकती थी , लेकिन एक धारा के रूप में बह नहीं सकती थी । स्थैतिक बिजली को लेकर कई प्रयोग किये गये । शुरू के इन प्रयोगों में सबसे महत्वपूर्ण नतीजा 1752 में बेंजमिन फ्रैंकलिन की सनसनीपूर्ण खोज के रूप में निकला । उसने पता लगाया कि बिजली की चिनगारी उसी तरह की है जैसेकि आकाश में बिजली की कौंध । अब समस्या थी कि बिजली की सतत धारा कैसे प्राप्त की जाय । इसका समाधान अट्ठारहवीं शताब्दी के अंत में डायनामो की खोज से पूरा हुआ । इस खोज से बिजली की कहानी में एक नया अध्याय जुड़ गया । 1789 में एक दिन शरीर रचना का अध्ययन करनेवाले इतालवी प्रोफेसर लुइगी गैल्वनी ने मेज पर एक मेंढक छोड़ दिया जिसके शरीर को चीर दिया गया था । जब उसने मेंढक की एक तंत्रिका को इस्पात के एक यंत्र से छुआया तो मेंढक ने अपनी एक टाँग से जोरदार झटका दिया । मेंढक ने ऐसा ही झटका तब भी दिया जब उसकी टाँगों को तांबे के तारों से बाँध कर लोहे के जंगले से लटकाया गया । गैल्वनी ने सोचा कि चूंकि इस प्राणी में बिजली थी इसलिए इसकी टाँग की नसों को जिंक की छड़ से छुआकर झटके पैदा किये जा सकते थे । झटके तब भी हुए जब कि किसी माँसपेशी को तांबे की एक ऐसी छड़ से छुआ गया जो स्वयं जिंक से जुड़ी थी । इस चीज़ को ' गैल्वेनिज्म ' अथवा जंतु - बिजली का नाम दिया गया । 

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